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Friday, June 13, 2008

सब कुछ सीख कर भी तुम कुछ न सीख सके

इन अंधेरों में, मैं रोशनी की किरण तलाशता रहा,
कुछ इस तरह से मैं अपनी ज़िंदगी तराशता रहा ।

मुझको पाने की मंज़़िल नहीं कोई ख्वाहिश
मेरी मंज़िल तो बस मेरा रास्ता रहा।

ऐसी ज़िंदगी की नहीं ई हसरत
जिसका बस लालच से ही वास्ता रहा

सफर तो यूं सभी करते हैं पूर्ण जिंदगी का
किसी का तेज़, किसी का आहिस्ता रहा

सब कुछ सीख कर भी तुम कुछ न सीख सके मानव
जिस ने चाहा परखा तुम्हे जिसने चाहा वो जांचता रहा

पंकज रामेन्दू मानव