रविन्द्र का ताल्लुक पत्रकारिता जगत से नया नया है, ये एडिटवर्क्स स्कूल ऑफ मास कम्यूनिकेशन में बी.एस.सी. इलेक्ट्रानिक मीडिया में प्रथम वर्ष के छात्र हैं। इनकी उम्र मात्र सत्रह वर्ष है। ये अपनी पहली रचना के साथ मुद्दा पर आये हैं।
रविन्द्र
मै देखना चाहती थी,
शिखर की उन ऊंचाईयों को,
न जाने क्यों देख न पाई।
एक लड़की होने के अहसास,
के बंधन को कभी तोड़ न पाई।
मै चाहती थी कुछ ऐसा कर दिखाना,
जो मेरी छवि को बना देता और भी निराला।
कुछ ऐसा जहाँ ने दिया फिर ताना,
जिसने बना दिया समाज से बेगाना।
मै चाहती थी आजाद भारत में रहकर कुछ करने की,
मगर आजाद हो कर जीना मेरा समाज को रास ना आया।
फिर मुझे दबंगों कि तरह जीना सिखाया,
जिसके बाद मुझे सभ्य नारी का पद मिल पाया।
न जाने कब ये समझेगा ज़माना,
कि नारी ही होती है, हर इंसान को समाज में लाने का बहाना।
न जाने कब लिखा जायेगा,
नारी को अपने हक से जीने का अफसाना।
3 comments:
बहुत बढ़िया
I like ur poem very much ..pls rite more poem like this.. all da best fr ur great future... hip hip hore...
great if youth think like that its reat for us. keep it up
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