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Tuesday, October 7, 2008

टी.आर.पी. का खेल

1 comment:

Anonymous said...

हे भगवान कहां ले जाएगा हमें और हमारे समाज को ये टीआरपी का चक्कर.मौत पर मातम मनाया जाता है.लेकिन यहां तो विज्ञापन बना दिया गया ताकि लोग आएं इस पगलाए चैनल के पास. दोस्त आज सबसे बड़ी बिडम्बना टीआरपी ही है.जिसके चक्कर में अच्छे अच्छे लोग बौरा गए हैं.इन चैनलों के आकाओं को देश समाज दुनिया को कोई चिंता नहीं है.अगर इनकी मां चु....कर भी टीआरपी मिले तो ये वो भी करने को तैयार होंगे.भगवान बचाए ऐसे आकाओं से.
भुपेश नायक