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Friday, October 1, 2010

संघर्षों का दौर

. मेरे संघर्षों का दौर अभी बाकी है, ज़रा ठहरो

इस रात की भोर अभी बाकी है, ज़रा ठहरो



तू ले ले और इम्तेहान जिन्दगी, में भी तैयार हूं

मेरी किस्मत में ज़ोर अभी बाकी है, ज़रा ठहरो



जानता हूं इस तपिश भरी ज़मीन पर बूंदे गिरी हैं चंद

बरसना बादलों का घनघोर अभी बाकी है ज़रा ठहरो



यह दुनिया कभी कि गर्त में चली गई होती

यहाँ ईमान कुछ और अभी बाकी है ज़रा ठहरो



स्वाती तुम न घबराना वक्त के बदलावों से

तेरी आस वाला चकोर अभी बाकी है ज़रा ठहरो



इतनी जल्दी हार ना मानना "मानव"

कुछ पल ओर अभी बाकी है, ज़रा ठहरो

पंकज रामेंदु मानव

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