पंकज रामेन्दू
जिंदगी को बस इसलिए दोबारा रखना चाहूंगा
मैं फिर तुझे उतनी ही शिद्दत से तकना चाहूंगा ।
प्यार तेरा पा सकूं मेरी यही कोशिश नहीं,
बन के खुशब तेरी सांसो में बसना चाहूंगा।
तेरी सूरत मेरी आंखो में हो बस यही हसरत नहीं
मैं ख्वाब ओ ख्यालों में तुझको भी दिखना चाहूंगा ।
जिसकी संगत से हुस्न निखरे औऱ बढ़े रंगत
बन के वो श्रंगार तेरे अंग अंग पे सजना चाहूंगा
हो सकता है लगे तुझे ये बाते बहुत बड़ी बड़ी
इंच भर मुस्कान की खातिर, में बिकना चाहूंगा ।
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