Pages

Wednesday, April 28, 2010

एक सवाल

पंकज रामेन्दू

एक सवाल हर बार सोचता हूं कि जिंदगी जब एक रूपया हो जायेगी,तो बारह आने खर्च कर डालूंगा औऱ चाराने बचा लूंगा, कभी ज़रूरत पड़े,तो इन चारानों से बारानों का मज़ा ले सकूं,लेकिन जब भी वक्त की मुट्ठी खुलती है तो हथेली पर चाराने ही नज़र आते हैं पूरी जिंदगी चाराने को बाराने बनाने में होम हो जाती है, कई बार लगता है कि जब ये रुपया हो जायेगी तो क्या जिंदगी, जिंदगी रह जाएगी ?

Saturday, April 17, 2010

जवान देश बूढ़े लोग


जवान देश बूढ़े लोग

-उन दोस्तों के लिए जो समय से पहले बूढ़े हो चले हैं ।

मेरे कुछ दोस्त हैं । पैदाईश की उम्र को पैमाना मानें तो माशाअल्लाह गबरू-जवान कहलाने लायक हैं । पर जवानी उन्ामें झलकती नहीं । जोश नहीं मारती । पतला वाला तीस के करीब पहुंच चुका है । मोटा दो साल पीछे है। ढलती शाम के साथ ही दोनों के कंधे झुक जाते हैं । चेहरे पर पीलापन हावी होने लगता है । बुझा-बुझा सा दिखता चेहरा चिल्ला चिल्ला कर बुढ़ापे से उनकी बढ़ती नजदीकी को बयान करते हैं ।

बात महज जवानी से दूर होते बॉडी-लैंग्वेज तक रूकी रहती तो खैर था । क्यां बताएं इन दिनों उनकी बातचीत का लहजा भी खतरनाक हो चला है । महज चार-पांच साल पुरानी नौकरी में पचास साल का अनुभव पा चुके इन दोस्तों के तर्क भी अजब गजब है । हर ओर छाई उदासी और खतरे को खुद से सबसे पहले जोड़ने लेत हैं । मुझे बहुत फिक्र है मेरे भाईयों । क्या होगा तुम दोनों का ।

उनको देख ऐसा लगता है जैसे छत के उपर मुंडेर पर काला लिहाफ ओढ़े खतरनाक बुढ़ापे का साया उन्हें लगातार पास बुला रहा है । झूलते चेहरों वाले, सफेद बालों और थकी हुई आंखों पर चश्मा लगाने वाला वह चेहरा डरा रहा है । और जवानी । जैसे दूर किसी छत पर खड़ी अलमस्त जवान औरत की तरह बन गई है। पास आने को तरसा रही है । लगातार बढ़ती दूरी का नशतर चुभा रही है ।

वैसे यह इन दो दोस्तों की बात नहीं है । ऑफिस में जुटे कामकाजी सहयोगियों पर भी ढलती हुई उम्र का असर दिखता नजर आ रहा है । मिला-जुलाकर एक बेचारगी सी झलकती है सबके चेहरे पर । लड़ने को कोई जज्बा नहीं बचा है किसी में । पैदा हो गए थें । सो किसी तरह समय काटने के लिए खा पका रहे हैं ।

सच कहूं तो गहरे अर्थों में यह मुल्क भी बूढ़ा हो चला है । समय से पहले रिटायरमेंट प्राप्त कर चुका बुजूआü मुल्क । विश्वास नहीं होता हो , अपने करीब मौजूद किसी छोटे बच्चे से सवाल पूछीए । जिंदगी और मौत के बारे में उसके विचार जानने की कोशिश कीजिए । उससे तीन गुणे ज्यादा उम्र का पढ़ा लिखा विदेशी भी उतना नहीं बता पाएगा । जितना हमारे देश का छोटा बच्चा जिंदगी और मौत के बारे में अधिकार भाव से बोलता नजर आएगा ।
आप शायद इसे संस्कारों की संज्ञा देंगे । पर मैं इसमें खो गए बचपन की बालपन को देखता हूं । खेलने कूदने की उम्र में ही गंभीर हो चला है । तत्व ज्ञान जैसी बातें करता है। और हम मुग्ध हैं । वाह! इट हैपेन्स ओनली इन इंडिया ।

मैने सुना था कि आबादी के उम्र के लिहाज से भारत एक युवा देश है । देश की साठ फीसदी आबादी जवान कहलाने लायक है । हां उम्र के पैमाने पर सही है । पर दिमागी तौर पर सब के सब मौत का इंतजार करती हुई एक बेचारी भीड़ से ज्यादा कुछ नहीं है । मामला चाहे कोई भी हो । कोई लहर पैदा नहीं होती । संसद में पैसे लेकर सरकार गिराने की बात हो । बंगलुरु या अहमदाबाद में बम Žलॉस्ट की बात हो । सड़क खराब हो जाने की बात हो । या सरेशाम किसी युवति की इज्जत के साथ होने वाले खिलवाड़ की बात हो । हम पर कोई असर नहीं पड़ता । जब तक हम सुरक्षित हैं । हमें परवाह ही नहीं । आखिर हम जवान जो ठहरे ! इंडिया इज यंग ! ! ! !

जानता हूं अभी भी यकिन नहीं आता होगा । मान ही नहीं सकते । विश्व गुरू रह चुके हैं हम । ऐसे कैसे मान लेंगे । मैंने कहा और मान लें । अरे मैं कौन हूं । एक छोटा प्रयोग करके देखीए । देश और दुनिया में जुड़ी बातों पर लोगों के विचार सुनिए । खाट पर पड़े चर चर करने वाले बुढ़ापा राग और निंदा रस में डूबी व्या�याओं के अलावा कुछ और नहीं दिखेगा । एक भी आदमी ऐसा नहीं दिखता या बोलता कि हम नया क्या कर सकते हैं। पता नहीं क्यों उम्र से जवान लोग भी जवानी की भाषा भूल गए हैंं ।

हर मोड़ पर । हर चेहरे पर एक लाचारी दिखती है । बस यूं ही घीसटते रहने की लाचारी । कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है । यही नहीं कोई आगे बढ़े तो एक दो नहीं चालीस लोग उसे रोकने को आगे आ जाते हैं । मां-बाप रोकते हैं । भाई बहन लगाम लगा देतेे हैं । दोस्त समाज सब जुट जाते हैं । अरे रोको इसे । यह पागल है जवानी की बात करता है । अरे कुछ नहीं होगा । बहुत आए और बहुत गए ।

बसों में सफर करते वक्त आस पास लोगों के चेहरे देखीएगा । एक बेचारगी सी दिखेगी । सबके चेहरे पर सम भाव बेचारगी । साथ साथ लटके रहने का भाव । उ�मीद बस दो ही है । किसी तरह पास वाली सीट पर बैठने का अवसर मिल जाए । या जल्दी बस स्टॉप आ जाए ।

बूढ़ा मुल्क और सोच भी क्या सकता है । मजेदार बात यह है कि लोग तर्क खोज लेते हैं । तर्क के रंग से बाल काले करने का प्रयास करते हैं । कहते हैं कि देखों जिंदगी ऐसे ही चलती है भाई । देखो बाल काले हैं हमारे । जवानी बची है यार । थोथे तर्क । पर कमजोर हाथों में भारी तलवार कितनी देर टिकती है । खुद ही सर या पांव पर दे मारते हैं हम सारे ।

अपने एक बुढ़ाते दोस्त के छोटे भाई की कहानी सुनाऊं आपको । जिंदगी और मौत के बारे में अधिकार भाव से बोलते नजर आते हैं । नौकरी जो करते हैं उसकी फिक्र कम है । जज्बा नहीं पेट भरने का रूटीन है । बेहतर तरीके से कैसे काम करते हैं यह पूछते ही चुप हो जाते हैं । पर जिंदगी और मौत पर चर्चा छेड़ीए कि उनका व्या�यान शुरू हो जाता है । मेरी एक महिला मित्र हैं। हां, वाकई हैं । उनकी छोटी बहन भी है । एक दिन शुरू हो गइंü । जिंदगी और जिंदगी के बाद की जिंदगी पर । उनकी रूचि देखकर मैं भी दंग रह गया । पूछा, जिंदगी को कौन सी दिशा देना चाहती है । बोलीं , होय वही जो राम रची राखा। अब ऐसे लोगों से हम जवानी की उ�मीद क्या करें । होय वहीं , जो राम रची राखा। हां अधूरा छोड़कर लिखना बंद कर रहा हूं । बाकी जल्द ही । किस्तों में । यहीं ।