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Wednesday, June 30, 2010

बनियों की गली





सैयद जैगम इमाम (दोस्तों, नवोदित साहित्यकार सैयद जैगम इमाम की 30 नवम्बर 2009 को लोकार्पित इंकलाबी किताब “दोज़ख़” को मशहूर प्रकाशक राजकमल प्रकाशन ने बैस्ट सेलर की श्रेणी में शुमा...र किया है )

गली में बनियों का राज था। ढेर सारी दुकानें, आढतें और न जाने कितने गोदाम। सब के सब इसी गली में थे। बनिए और उनके नौजवान लडके दिन भर दुकान पर बैठे ग्राहकों से हिसाब किताब में मसरुफ रहते। शुरु -शुरु में वो इस गली से गुजरने में डरती थी, न जाने कब किसकी गंदी फब्‍ती कानों को छलनी कर दे। फ‍िर क्‍या पता किसी का हाथ उसके बुरके तक भी पहुंच जाए। डरते सहमते जब वो इस गली को पार कर लेती तब उसकी जान में जान आती। मगर डर का यह सिलसिला ज्‍यादा दिनों तक नहीं चला। उसने गौर किया ग्राहकों से उलझे बनिए उसकी तरफ ज्‍यादा ध्‍यान नहीं देते। हां इक्‍का दुक्‍का लडके उसकी तरफ जरुर देखते मगर उनकी जिज्ञासा उसके शरीर में न होकर के उस काले बुर्के में थी जिससे वो अपने को छुपाए रखती थी।
वो पढती नहीं थी, छोटी क्‍लास के बच्‍चों को पढाती थी। तमाम शहर में मकान तलाशने के बावजूद जब उसके अब्‍बा को मकान नहीं मिला तो हारकर इस बस्‍ती का रुख करना पडा। अब्‍बा ने मशविरा दिया था ''बेटी घर से बाहर न निकलो'' मगर उनकी आवाज में ज्‍यादा दम नहीं था। घर में कमाने वाला कोई न था फ‍िर वो कुछ रुपयों का इंतजाम कर रही थी तो इसमें बुरा क्‍या था। दिन गुजर रहे थे उसके स्‍कूल जाने का सिलसिला जारी था। उसने नोट किया इधर बीच बनियों की गली के ठीक बाद पडने वाले चौराहे पर पास के मदरसे के तीन चार लडके रोज खडे रहते हैं। उसने ज्‍यादा ध्‍यान नहीं दिया। दिल में एकबारगी आवाज उठी , भला इनसे क्‍या डरना। एक दिन अजीबो गरीब बात हुई। चौराहे पर एक लडका उसके ठीक सामने आ गया। हाथ उठाकर बडी अदा से कहा अस्‍सलाम आलेकुम। वो चौंक गई। उसके लडकों से इस तरह की उम्‍मीद कतई नहीं थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया। कलेजा थर थर कांप रहा था। वापसी में भी वही लडके उसके सामने खडे थे। उसने घबरा कर तेज तेज चलना शुरु कर दिया। लडके उसकी तरफ बढे मगर वो फटाक से बनियों की गली में घुस गई। लंबी -लंबी दाढी, सफाचट मूंछ ओर सिर पर गोल टोपी रखने वाले लडकों के इरादे उसे वहशतनाक लगे। रात को वो सो नहीं सकी। रात भर जहन में यही ख्‍याल आता रहा कि कल क्‍या होगा। उसने ख्‍वाब भी देखा , बडी दाढी वाले एक लडके ने उसका दुपट्टा खींच लिया है।
स्‍कूल जाने का वक्‍त हो गया था। वो दरवाजे तक गई मगर फ‍िर लौट आई। आज फ‍िर बदतमीजी का सामना करना पडा तो.....। उसने अब्‍बा से दरख्‍वास्‍त की, उसके साथ स्‍कूल तक चलें। उसने खुलकर कुछ नहीं कहा। अब्‍बा ने भी कुछ नहीं पूछा। मगर उन्‍हें बनियों पर बेतहाशा गुस्‍सा आया। दांत किचकिचाते हुए उन्‍होंने अंदाजा लगा लिया कि बनिये के किसी लडके ने उनकी बेटी को छेडा है। बेटी को गली के पार पहुंचाने के बाद वो वापस लौटने लगे। चौराहे पर अभी भी वो लडके खडे थे। उसने अब्‍बा से स्‍कूल तक चलने की बात कही। आज लडके कुछ नहीं बोले। वापसी में उसका दिल जोर जोर से धडक रहा था। मगर नहीं चौराहे पर लडके नदारद थे। उसने खुदा का शुक्र अदा किया। घर पहुंची तो अम्‍मा उसकी परेशानी का सबब पूछ रहीं थीं। अम्‍मा बार बार बनियों को गाली भी दे रहीं थीं। उन्‍होंने उसे गली छोडने की सलाह भी दी। मगर वो कुछ नहीं बोली।
आज अब्‍बा घर नहीं थे। उसे पहले की तरह अकेले स्‍कूल जाना था। गली से चौराहे पर पहुंचते वक्‍त उसका कलेजा धाड धाड बज रहा था। चौराहे पर लडके हमेशा की तरह उसके इंतजार में खडे थे। वो हिम्‍मत बांधकर आगे बढी मगर फ‍िर एक लडका उसके सामने आ गया। उसके बढने के अंदाज ने उसकी रीढ में सिहरन पैदा कर दी। उसके मुंह से चीख निकल गई। वो वापस बनियों की गली की तरफ दौड पडी। गली के बनिये सारा तमाशा देख रहे थे। शरीफ लडकी से छेडछाड उन्‍हें रास नहीं आई। गली के नौजवान मदरसों के इन लुच्‍चों की तरफ दौड पडे। जरा सी देर में पूरी गली के बनिये शोहदों की धुनाई कर रहे थे। भीड लडकों को पीट रही थी और वो चुपचाप किनारे से स्‍कूल निकल गई। वापस में चौराहा खामोश था। लडके नदारद थे। गली से गुजरते वक्‍त उसे ऐसा लगा कि हर कोई उसे देख रहा है। मगर ये आंखें उसे निहारने के लिए नहीं उठी थीं। ये सहानूभूति और गर्व से उठी नजरें थीं जो उसे बता रहीं थीं कि चिंता मत करो हम अपनी बहू बेटियों के साथ छेडछाड करने वालों का यही हश्र करते हैं।
घर पहुंची तो देखा अब्‍बा एक मौलवी से गूफ्तगू कर रहे हैं। ये उस मदरसे के प्रिंसिपल थे जहां मार खाने वाले लडके तालीम हासिल कर रहे थे। अब्‍बा ने उसे हिकारत की नजर से देखा। उसे कुछ समझ नहीं आया। कमरे में गई अम्‍मा से मसला पूछने। जबान खोली ही थी कि एक थप्‍पड मुंह पर रसीद हो गया।
उसे समझ नहीं आया कि आखिर माजरा क्‍या है। अम्‍मा सिर पटक रहीं थीं, उसने खानदान के मुंह पर कालिख पोत दी। अम्‍मा बयान कर करके रोए जा रहीं थीं। उनकी बुदबुदाती आवाज में उसे सिर्फ इतना समझ आया, बनिए के लडकों से उसकी यारी थी जिन्‍होंने उन शरीफ तालिबे इल्‍मों को पीट दिया। उसका कलेजा मुंह को आ गया, आंखों में आंसू की बूंद छलक आई। अगली सुबह घर में खाना नहीं पका। उसके स्‍कूल जाना छोड दिया।

नक्सलबाड़ी आंदोलन

-- नक्सलबाड़ी आंदोलन --

संक्षिप्त इतिहास

नक्सलवाद का जन्म पिछली सदी के साठ के दशक में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी आंदोलन की कोख से हुआ। नक्सलबाड़ी गांव के कुछ छोटे किसानों ने स्थानीय सामंतों के शोषण के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया और उन्हें सजा दी। नक्सलबाड़ी आंदोलन को बौद्धिक वर्ग का जबरदस्त समर्थन मिला, तो इसके पीछे वक्त का तकाजा और व्यवस्था से मोहभंग के कारण उपजी रिक्तता को भरने की आक्षंका भी थी। चारु मजूमदार और कानू सान्याल जैसे नेताओं के नेतृत्व में इसका विस्तार पूरे पश्चिम बंगाल में हुआ। लेकिन सत्तर के दशक के दमन और राज्य में वामपंथी पार्टी के सत्तारुढ़ होने के बाद भूमि सुधार कार्यक्रम के लागू होने के साथ यह आंदोलन पड़ोसी राज्यों की ओर कूच कर गया। पिछले करीब तीन दशक में नक्सली आंदोलन में आई विकृतियों ने उसे बौद्धिक समर्थन से भले ही महरूम किया हो, पर समाज के दबे-कुचले वर्गों, आदिवासियों में उसने काफी पैठ बना ली है। यही कारण है कि आज देश के दर्जन भर से अधिक राज्यों के लिए नक्सलवाद सिरदर्द बन गया है।

-- प्रमुख नक्सली गुट --

नक्सलवादी आंदोलन से जुड़े तीन मुख्य संगठन हैं

नक्सली आंदोलन से जुड़े तीन संगठन मुख्य रूप से सक्रिय रहे हैं- एमसीसी (माउस्टि कम्युनिस्ट सेंटर)- वर्ष १९८४ में इस गुट को बिहार में ठोस पहचान मिली। बाद में इसने अनेक बर्बर नरसंहारें को अंजाम दिया। इसका प्रभाव बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में रहा है। पीडीब्ल्यू (पीपुल्स वार ग्रुप)- वर्ष १९८० में कोंडपल्ली सीतारमैया ने तेलंगाना में इस उग्रवादी संगठन की नींव रखी। आंध्र प्रदेश में इसका व्यापक प्रभाव है। जनशक्ति- यह गुट भी आंध्र प्रदेश में ही सक्रिय रहा है। लेकिन बाद में ये तीनों संगठन सीपीआई (माओस्ट) नामक संगठन की छतरी के नीचे एकत्रित हो गए।

(साभार अमर उजाला)

Friday, June 25, 2010

फ्लाईओवर।



यह लेख उस छात्र की कॉपी से लिया गया है, जिसे निबंध लेखन प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार मिला है। निबध का विषय था - फ्लाईओवर।

फ्लाईओवर का जीवन में बहुत महत्व है, खास तौर पर इंजीनियरों और ठेकेदारों के जीवन में तो घणा ही महत्व है। एक फ्लाईओवर से न जाने कितनी कोठियां निकल आती हैं। पश्चिम जगत के इंजीनियर भले ही इसे न समझें कि भारत में यह कमाल होता है कि पुल से कोठियां निकल आती हैं और फ्लाईओवर से फार्महाउस।

खैर, फ्लाईओवर से हमें जीवन के कई पाठ मिलते हैं, जैसे बंदा कई बार घुमावदार फ्लाईओवर पर चले, तो पता चलता है कि जहां से शुरुआत की थी, वहीं पर पहुंच गए हैं। उदाहरण के लिए ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के पास के फ्लाईओवर में बंदा कई बार जहां से शुरू करे, वहीं पहुंच जाता है। वैसे, यह लाइफ का सत्य है, कई बार बरसों चलते -चलते यह पता चलता है कि कहीं पहुंचे ही नहीं।

फ्लाईओवर जब नए-नए बनते हैं, तो एकाध महीने ट्रैफिक स्मूद रहता है, फिर वही हाल हो लेता है। जैसे आश्रम में अब फ्लाईओवर पर जाम लगता है, यानी अब फ्लाईओवर पर फ्लाईओवर की जरूरत है। फिर उस फ्लाईओवर के फ्लाईओवर के फ्लाईओवर पर भी फ्लाईओवर चाहिए होगा। हो सकता है कि कुछ समय बाद फ्लाईओवर अथॉरिटी ऑफ इंडिया ही बन जाए। इसमें कुछ और अफसरों की पोस्टिंग का जुगाड़ हो जाएगा। तब हम कह सकेंगे कि फ्लाईओवरों का अफसरों के जीवन में भी घणा महत्व है।

दिल्ली में इन दिनों फ्लाईओवरों की धूम है। इधर से फ्लाईओवर, उधर से फ्लाईओवर। फ्लाईओवर बनने के चक्कर में विकट जाम हो रहे हैं। दिल्ली गाजियाबाद अप्सरा बॉर्डर के जाम में फंसकर धैर्य और संयम जैसे गुणों का विकास हो जाता है, ऑटोमैटिक। व्यग्र और उग्र लोगों का एक ट्रीटमेंट यह है कि उन्हें अप्सरा बॉर्डर के जाम में छोड़ दिया जाए।

फ्लाईओवर बनने से पहले जाम फ्लाईओवर के नीचे लगते हैं, फिर फ्लाईओवर बनने के बाद जाम ऊपर लगने शुरू हो जाते हैं। इससे हमें भौतिकी के उस नियम का पता चलता है कि कहीं कुछ नहीं बदलता, फ्लाईओवर का उद्देश्य इतना भर रहता है कि वह जाम को नीचे से ऊपर की ओर ले आता है, ताकि नीचे वाले जाम के लिए रास्ता प्रशस्त किया जा सके।

फ्लाईओवरों का भविष्य उज्जवल है। कुछ समय बाद यह सीन होगा कि जैसे डबल डेकर बस होती है, वैसे डबल डेकर फ्लाईओवर भी होंगे। डबल ही क्यों, ट्रिपल, फाइव डेकर फ्लाईओवर भी हो सकते हैं। दिल्ली वाले तब अपना एड्रेस यूं बताएंगे - आश्रम के पांचवें लेवल के फ्लाईओवर के ठीक सामने जो फ्लैट पड़ता है, वो मेरा है। कभी जाम में फंस जाएं, तो कॉल कर देना, डोरी में टांग कर चाय लटका दूंगा। संवाद कुछ इस तरह के होंगे - अबे कहां रहता है आजकल रोज अपने फ्लैट से पांचवें लेवल का जाम देखता हूं, तेरी कार नहीं दिखती। सामने वाला बताएगा - आजकल मैं चौथे लेवल के फ्लाईओवर में फंसता हूं। अबे पांचवें लेवल के जाम में फंसा कर, वहां हवा अच्छी लगती है। अबे, ले मैं तेरे ऊपर ही था, पांचवें वाले लेवल पर और तू चौथे लेवल पर, कॉल कर देता, तो झांककर बात कर लेता। आने वाले टाइम में दिल्ली वाले अपने मेहमानों को फाइव डेकर जाम दिखाने लाएंगे।

Thursday, June 17, 2010

देश में प्रमुख आतंकी घटनाएं


प्रमुख ब्लास्ट-- पुणे में आतंकी हमला, ९ की मौत –
-- मुंबई हमला – ( सशस्त्र आतंकियों ने आठ जगहों पर गोलीबारी की )
-- दिल्ली ब्लास्ट – ( ३० मिनट के भीतर पांच विस्फोट)

-- अहमदाबाद ब्लास्ट -- ( ७० मिनट में १६ ब्लास्ट से थर्राया शहर)
-- जयपुर ब्लास्ट – (७० से ज्यादा की मौत, २०० घायल, देश भर में सुरक्षा अलर्ट)
-- मुंबई बम ब्लास्ट (१२ मार्च १९९३) – (२५० लोगों की मौत, ७०० घायल)
-- कोयंबटूर बम ब्लास्ट (१४ फरवरी १९९८) – (५८ लोगों की मौत, २०० घायल)
-- बैंगलौर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस पर हमला (२००५) – (एक व्यक्ति की मौत, चार घायल)
-- दिल्ली बम ब्लास्ट (२९ अक्टूबर २००५) – (५९ की मौत, २०० घायल)

-- घाटकोपर बम ब्लास्ट (२ दिसंबर २००२) – (२ लोगों की मौत, ५० घायल)




ट्रेन हादसे

-- बैंगलोर एक्सप्रेस ट्रेन हादसा (२१ दिसंबर २००२) – (२० लोगों की मौत, ८० घायल)
-- जौनपुर ट्रेन हादसा (२८ जुलाई २००५) – (१३ लोगों की मौत, ५० घायल)
-- समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट हादसा (१९ फरवरी २००७) – (६८ लोगों की मौत, ५० घायल)
-- मुंबई ट्रेन हादसा (११ जुलाई २००६) – (२०९ लोगों की मौत, ७१४ घायल)
-- ब्रह्म्पुत्र ट्रेन हादसा (३० दिसंबर १९९६) – (३३ लोगों की मौत)

मंदिरों पर हमला

-- राम जन्म भूमि पर हमला (५ जुलाई २००५) – (५ आतंकियों समेत १ नागरिक की मौत)
-- वाराणसी केसंकट मोचन मंदिर पर हमला ( ७ मार्च २००६ ) – (२८ लोगों की मौत, १०१ घायल)
-- अक्षरधाम मंदिर पर हमला (२५ सितंबर २००२) – (२९ लोगों की मौत, ७९ घायल)
-- रघुनाथ मंदिर पर हमला (३० मार्च २००२) – (७ लोगों की मौत, २० घायल)



मसजिदों पर हमला

-- मालेगांव ब्लास्ट (८ सितंबर २००६) –(३७ लोगों की मौत, १२५ घायल)
-- हैदराबाद मक्का मसजिद ब्लास्ट (१८ मई २००७) – (१६ लोगों की मौत, १०० घायल)


अन्य हमले

-- सीआरपीएफ सेंटर पर हमला (१ जनवरी २००८) – (सात जवानों समेत आठ की मौत)

-- अब्दुल गनी की मीटिंग में हमला – (मई २००२ में आतंकका शिकार बने लोन)




(साभार अमर उजाला)

Wednesday, June 16, 2010

देश में प्रमुख आतंकी संगठन

इंडियन मुजाहिद्दीन का परिचय
कई संगठनों का मिलाजुला रूप इंडियन मुजाहिद्दीन देश में जड़ें जमाए कई संगठनों का मिलाजुला रूप है। इन संगठनों में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट्स ऑफ इंडिया (सिमी), पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और बांग्लादेश स्थित हरकत उल जिहाद-ए-इस्लामी (हूजी) से जुड़े आतंकी शामिल हैं।

लश्कर-ए-तैयबा का परिचय
दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन
लश्कर-ए-तैयबा दक्षिण एशिया का अति सक्रिय व बहुत बड़ा आतंकवादी संगठन है। इस संगठन की स्थापना मोहम्मइ सईद ने अफगानिस्तान के कुनर प्रांत में की थी। वर्तमान में लश्कर-ए-तैयबा लाहौर और पाकिस्तान में स्थित है और पाक अधिकृत कश्मीर में इसके बहुत सारे मिलिटेंट कैंप हैं। लश्कर-ए-तैयबा ने भारत के खिलाफ बहुत सारी आतंकी वारदातों को अंजाम दिया है। इस संगठन का लक्ष्य कश्मीर से भारत का आधिपत्य समाप्त करना है। लश्कर के कुछ सदस्यों पर मुशर्रफ की नीतियों के खिलाफ, विशेषकर करांची में हमले करने के आरोप भी लगे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रेलिया, भारत और पाकिस्तान ने इस संगठन को प्रतिबंधित किया हुआ है। कुछ खुफिया एजेंसियों के अनुसार पाकिस्तान द्वारा लगाए गए प्रतिबंध से बचने के लिए लश्कर-ए-तैयबा ने २००२ में अपना नाम बदलकर जमात-अल-दवात रख लिया है।

इसलामिक हुजी का परिचय
१९८० में हुई थी स्थापना
आतंकी संगठन हरकत-उल-जिहाद-ए-इसलामी की स्थापना १९८० में की गई। दो पाकिस्तानी संग्ठन जमात-उल-उलेमा-ए-इसलामी (जुल) और तबलीग-ए-जमात(तीज) को मिलाकर हुजी का गठन हुआ।

हिजबुल मुजाहिद्दीन का परिचय
खूखांर आतंकी संगठन है हिजबुल
आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन की स्थापना १९८९ में पाकिस्तान में हुई थी। वर्तमान में यह पाकिस्तान व पाक अधिकृत कश्मीर से आतंवादी गतिविधियों को संचालित करता है और भारत प्रशासित कश्मीर में अति सक्रिय है। संगठन अपने आप को स्वतंत्रता सेनानी मानता है जबकि भारव व दूसरे मुल्कों की नजरों में यह एक खूंखार आतंकवादी संगठन है। हिजबुल मुजाहिद्दीन का मुख्यालय पाक अधिकृत कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद में है। ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तानी खूफिया एजेंसी आईएसआई के उकसाने पर आतंकवादी संगठन अल-बदर से अलग होकर कुछ आतंकवादियों ने पृथक हिजबुल मुजाहिद्दीन संगठन की नींव रखी थी। वर्तमान समय में इस संगठन का मुखिया सईद सलाउद्दीन है। ३० नवंबर २००५ को यूरोपीय यूनियन की आतंकवादी संगठनों की सूची में हिजबुल मुजाहिद्दीन को भी शामिल किया गया। संयुक्त राष्ट्र ने भी आतंकवादी संगठन के रूप में इसकी घोषणा कर चुका है। यूरोपीय यूनियन के सदस्यों ने इस संगठन को आर्थिक मदद और दूसरे अन्य सामान मुहैया कराने पर पाबंदी लगाई हुई है। वर्तमान में हिजबुल मुजाहिद्दीन कश्मीर से संचालित सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन है। इसके साथ ही दोनों ओर के कश्मीर से इसे जबरदस्त समर्थन प्राप्त है। यही कारण है कि हिजबुल मुजाहिद्दीन कश्मीर का सबसे सक्रिय आतंकवादी संगठन बन गया है। संगठन का नाम- हिजबुल मुजाहिद्दीन संक्षिप्त नाम- एचएम स्थापना वर्ष- १९८९ मुख्यालय- मुजफ्फराबाद सदस्य संख्या- १५०० मुखिया- सईद सलाउद्दीन इलियास पीर साहिब प्रभावी क्षेत्र- पुंछ, रजौरी और डोडा जिले। दूसरे नेता- मास्टर अहसान धर, गुलाम रसूल शाह इलियास इमरान राही, अब्दुल हमीद बट्ट इलियास बॉम्बर खान, मुस्तफा खान। संगठन स्वरूप- जिहादी

लश्कर-ए-कहर का परिचय
आतंक की दुनिया में सबसे नया नाम
लश्कर-ए-कहर से दुनिया उस समय रू-ब-रू हुई जब इस आतंकवादी संगठन ने ११ जुलाई २००६ में मुंबई की लोकल ट्रेन में हुए सात बम विस्फोटों की जिम्मेदारी ली। हालांकि यह संगठन बहुत ही छोटा है और आतंकवादी संगठनों में सबसे नया नाम है। लेकिन इस संगठन के तार अल-कायदा और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए हैं। भारतीय खूफिया एजेंसी का मानना है कि लश्कर-ए-कहर एक फर्जी संगठन है और इसका कोई अस्तित्व है।

जैश ए मोहम्मद का परिचय
२००० में हुई थी स्थापना
जम्मू-कश्मीर में सक्रिय तमात आतंकवादी संगठनों में सबसे नया आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद सबसे नया है। इसकी स्थापना फरवरी २००० में की गई। जैश-ए-मोहम्मद का मुखिया मसूद अजहर है जिसे दिसंबर १९९९ में इंडियन एयरलाइंस के अपहरण के बाद भारत सरकार ने दो दूसरे चरमपंथियों के साथ रिहा कर दिया। इस संगठन में हरकत-उल-मुजाहिद्दीन और हरकत-उल-अंसार के कई चरमपंथी शामिल हैं। खुद मौलाना मसूद अजहर हरकत-उल-अंसार का महासचिव रह चुका है और उसके हरकत-उल-मुजाहिद्दीन से भी संपर्क रहे हैं। उसे १९९४ में श्रीनगर में गिरफ्तार किया गया था। लेकिन १९९९ में अफगानिस्तान के कंधार में उसकी रिहाई के बाद वो पाकिस्तान में नजर आया। तभी से उसने मृतप्रायः हरकत-उल-अंसार में जान फूंकने की कोशिश की। हालांकि पाकिस्तान में रहकर मौलाना मसूद अजहर के अपने संगठन में जैश-ए-मोहम्मद के गतिविधियां चलाने से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है क्योंकि विमान अपहरण की घटना से मौलाना अजहर पहले से ही काफी सुर्खियों में आ गया था।

इंडियन मुजाहिद्दीन का परिचय
कई संगठनों का मिलाजुला रूप
इंडियन मुजाहिद्दीन देश में जड़ें जमाए कई संगठनों का मिलाजुला रूप है। इन संगठनों में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट्स ऑफ इंडिया (सिमी), पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और बांग्लादेश स्थित हरकत उल जिहाद-ए-इस्लामी (हूजी) से जुड़े आतंकी शामिल हैं।

अहले हदीज का परिचय
पाक में लश्कर की स्थापना करने वाला संगठन
अहले हदीज चरमपंथी इस्लामी संगठन है। यह इस्लाम के बहावी मत को मानता है। ऐसा माना जाता है कि अहले हदीज ने ही दहशत और खौफ का पर्याय बन चुके आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की पाकिस्तान में स्थापना की थी। गौरतलब है कि लश्कर भारत में हुई कई बड़ी आतंकी वारदातों की जिम्मेदारी ले चुका है। अहले हदीज के कई कार्यकर्ता ‘सिमी’ के कैडर माने जाते हैं। वहीं, अहले हदीज से जुड़े लोगों ने भी कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया

‘सिमी’ का परिचय
१९७७ में ‘सिमी’ की स्थापना
सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया)भारत में प्रतिबंधित संगठन है। केंद्र सरकार ने इसे आतंकवादी संगठन मानते हुए वर्ष २००१ से प्रतिबंधित कर रखा है। सिमी की स्थापना अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने १९७७ में की थी। इसका घोषित उद्देश्य भारत को इस्लामिक राष्ट्र में बदलना है। इस काम के लिए यह संगठन हिंसा या जोर-जबरदस्ती को गलत नहीं मानता।

(साभार अमर उजाला)

Monday, June 7, 2010

इस राजनीति को कैसे देखें और क्यों देखें?

Ravish kumar
naisadak.blogspot.com
राजनीति एक छोटी फिल्म है। छोटी इसलिए क्योंकि अच्छी फिल्म होने के बाद भी दिलचस्प और बेजोड़ की सीमा से आगे नहीं जा पाती। कोई धारणा नहीं तोड़ती न बनाती है। अभिनय और संवाद और बेहतरीन निर्देशन ने इस फिल्म को कामयाब बनाया है। कहानी राजनीति के बारे में नई समझ पैदा नहीं करती। नए यथार्थ को सामने नहीं लाती। लेकिन इतनी मुश्किल कहानी और किरदारों को सजा कर ही प्रकाश झा ने बाज़ी मारी है और एक अच्छी फिल्म दी है। मैं बस इसे एक अच्छी फिल्म मानता हूं। यादगार नहीं। जो कि हो सकती थी।

मनोज बाजपेयी और रणबीर कपूर के अभिनय में एक किस्म का रेस दिखता है। पुराना और नया टकराते हैं। अपने-अपने छोर पर दोनों का अभिनय ग़ज़ब का है। मनोज की संवाद अदायगी काफी बेहतरीन है। अभिनय से अपने किरदार में जान डाल दी है। गुस्सा और लाचारी और महत्वकांझा का मिक्स है। रणबीर के अभिनय का भाव अच्छा है। एक अच्छा मगर शातिर लड़का।

महाभारत का दर्शन एक खानदान के भीतरघातों की कहानियों में ऐसे फंसता है कि सबकी जान चली जाती है। कोई अर्जुन नहीं,कोई दुर्योधन नहीं और कोई युधिष्ठिर नहीं है। सब बिसात पर मोहरों को मारने वाले हत्यारे हैं। किसी की नैतिकता महान नहीं है। सब पतित हैं। इस पारिवारिक युद्ध का कथानक बेहद निजी प्रसंगों में कैद होकर रह जाता है। सब कुछ सिर्फ चाल है।

इतनी रोचक फिल्म महान होते होते रह गई,बस इसलिए क्योंकि तमाम हिंसा के बीच विचारधारा को ओट बनाने की कोशिश नहीं की गई है। कम से कम विचारधाराओं की नीलामी ही कसौटी पर रखते। वही चालबाज़ियां हैं जिन्हें हम जानते हैं और जिनके कई रुपों को अभिनय के ज़रिये दोबारा देखते हैं। लेकिन हिन्दुस्तान की राजनीति विचारधारा की कमीज़ पहन कर घूमा करती है। उस ढोंग का पर्दाफाश नहीं दिखता जो खोखली और असली विचारधारा के बीच की जंग में पारिवारिक चालबाज़ियां छुप कर की जाती हैं। फिल्म में पूरी राजनीति प्रोपर्टी का झगड़ा बन कर रह जाती है। किसी का किरदार राजनेता का यादगार चरित्र नहीं बनाता। सब के सब मामूली मोहरे। हत्या और झगड़ा।

सूरज का किरदार ही है जो महाभारत से मिलता जुलता है। लेकिन नाम भर का। आज की दलित राजनीति के बाद भी यह दलित किरदार नाजायज़ निकला,मुझे काफी हैरानी हुई। बहुत उम्मीद थी कि सूरज बीच में आकर पारिवारिक खेल को बिगाड़ देगा लेकिन वो तो हिस्सा बन जाता है। आखिर तक पहुंचते पहुंचते दलित राजपूत का ख़ून निकल आता है। कुंती का नाजायज़ गर्भ दलित के घर में जाकर एक ऐसा लाचार कर्ण बनता है जो बाद में अपने राजपूती ख़ून को बचाने के लिए दोस्त दुर्योधन को ही दांव पर लगा देता है। ये वो वादागर कर्ण नहीं है जो सब कुछ त्याग देता है। फिल्म के आखिरी सीन में अजय देवगन समर प्रताप सिंह के रोल में रणबीर कपूर पर गोली नहीं चलाता। वीरेंद्र प्रताप सिंह मारा जाता है। कर्ण की दुविधा वीरेंद्र प्रताप सिंह के लिए जानलेवा बन जाती है। अगर सूरज समर पर गोली चला देता तो कहानी पलट जाती। लेकिन निर्देशक ने उसकी भी मौत तय कर रखी थी। समर प्रताप के ही हाथ। जिसे सूरज अपना खून समझ कर छोड़ देता है उसे समर प्रताप एक नाजायज़ ख़ून समझ कर मार देता है। बाद में फ्लाइट पकड़ कर अमेरिका चला जाता है पीएचडी जमा करने।


कैटरीना कैफ सोनिया गांधी की तरह लगती होगी लेकिन इसका किरदार सोनिया जैसा नहीं है। सारे किरदारों के कपड़े लाजवाब हैं। मनोज का कास्ट्यूम सबसे अच्छा है। चश्मा भी बेजोड़ है। लगता है प्रकाश झा बेतिया स्टेशन से खरीद कर लाये थे। कैरेक्टर को दुष्ट लुक देने के लिए चश्मा गज़ब रोल अदा करता है। अर्जुन रामपाल का अभिनय भी अच्छा है। धोती कुर्ता में नाना पाटेकर भी जंचते हैं। आरोप-प्रत्यारोपों की हकीकत सामने लाने के लिए महिला यूथ विंग की नेता का अच्छा इस्तमाल है। दलित बस्ती में मर्सेडिज़ की सवारी शानदार है। सबाल्टर्न का मामूली प्रतिरोध। नसीरूद्दीन शाह का किरदार कुछ खास नहीं है। कम्युनिस्ट नेता एक रात की ग़लती का प्रायश्चित लेकर कहीं खो जाता है। ये किरदार वैसा ही है जैसा जेएनयू जाएंगे तो सड़क छाप लड़के कहा करते हैं कि लड़की पटानी हो तो लेफ्ट में भर्ती हो जाया कीजिए। नसीर होते तो विचारधाराएं टकरातीं। विचारधाराओं की बिसात पर शह-मात के खेल होते तो कहानी यादगार बनती। लेकिन भाई ही लड़ते रह गए।

प्रकाश झा का कमाल यही है कि जो भी कहानी सामने थी उसके साथ पूरा न्याय किया है। भाइयों के बीच के झगड़े को बड़ा कैनवस दिया है। उसकी बारीकियों को खूबी से सामने लाया है। भीड़ की अच्छी शूटिंग की है। सहायक निर्देशकों ने भी खूब मेहनत की है। पहले हिस्से में फिल्म अच्छी लगती है लेकिन जब चाल चलने की संभावना खत्म हो जाती है और कहानी नतीजे की तरफ बढ़ती है तब निर्देशक सारे किरदारों को खत्म करने का ठेका ले लेता है। काश अगर इन्हीं दावेदारों में से कोई विजेता बन कर उभरता तो आखिर में ताली बजाने का मौका मिलता। एक सहानुभूति पैदा होती है। सिनेमा हाल से कुछ लेकर निकलते। फिर भी फिल्म देखते वक्त नहीं लगा कि टाइम खराब कर रहे हैं। यह फिल्म इसलिए भी अच्छी है क्योंकि सबने अच्छा काम किया है। कमजोरी कहानी की कल्पना में रह गई है। वर्ना दूसरा हिस्सा फालतू की मारामारी में बर्बाद नहीं होता। आप देख कर आइयेगा। मैं स्टारबाज़ी नहीं करता। इस फिल्म को देखना ही चाहिए।

Friday, June 4, 2010

वे अच्छे नागरिक है

अंजुले

वे अच्छे नागरिक है,वे आदर्श आदमीं हैं क्योंकि वे चुप हैं,वे
बुरे हो भी नहीं सकते क्योंकि वे किसी के फटे में टांग नहीं अड़ाते,वे
अच्छे आदमीं है,वे बुरे कभी हो ही नहीं सकते,वे जंग हार गए हैं और ये बात
उन्होंने लड़ने से पहले ही मान ली है,इसलिए वे अच्छे और आदर्श नागरिक
हैं.....

देश के जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान

आजादी के बाद पहली बार है देश के जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान मैन्यूफैक्चरिंग सेकम है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2009-10 के जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग योगदान7,19,975करोड़ रुपए(16.1%)है,
जबकि कृषि,वानिकी वफिशिंग का योगदान 6,51,901करोड़ रुपए (14.6%) है। लेकिन उद्योग के बढ़ने
के बावजूद वहां रोजगार के अवसर नहीं बढ़े हैं। कृषि पर न...िर्भर आबादी70करोड़ होगी,उद्योग पर बमुश्किल 15 करोड़।सरकार रोजगार के आंकड़े नहीं देती-अर्थकाम

Wednesday, June 2, 2010

प्रोफेसनल कोर्स या सामान्य कोर्स


हाल ही में सभी बोर्ड के परिणाम घोषित हो चुके हैं। सर्वप्रथम सभी सफल अभ्यर्थियों को हार्दिक बधाई!

परिणाम घोषित होते ही हर अभ्यर्थी और उसके पिता कॉलेज में एडमिशन के भागदौड़ में शामिल हो चुके हैं।
संजय हाल ही में बारहवीं पास किया है। उसके पिता श्याम सुंदर चाहते हैं कि उसका पुत्र साइंस से ग्रेजुएशन करे, लेकिन संजय कंप्यूटर या मीडिया में अपना कॅरियर संवारना चाहता है। संजय का सोचना सही है। सामान्य कोर्स करने के बाद कोई प्रोफेशनल कोर्स करने में समय अधिाक लगता है। इसलिए बारहवीं के बाद ही प्रोफेशनल कोर्स करने पर समय की बचत हो सकती है।
वर्तमान समय में प्रोफेशनल कोर्स की डिमांड है। सामान्य स्नातक को नौकरी में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट का भी यही मानना है कि भारत में 90 प्रतिशत ग्रेजुएट नौकरी के लायक नहीं हैं। उदारीकरण के बाद भारतीय कंपनियां विदेशी कंपनियों से प्रतिस्पध्र्दा करने के लिए कुशल कामगारों की मांग बढ़ी। रोजगार तो बढ़ा लेकिन कुशल लोगों की कमी बनी रही। यही वजह है कि हॉस्पिटेलिटी, टूरिज्म, रिटेल, प्रबंधान, बीमा, टेलीकॉम जैसे क्षेत्रों में जितने कुशल लोगों की डिमांड है उतना मिल नहीं पा रहा है। इन सभी क्षेत्रों की वर्तमान जरूरतों के हिसाब से सामान्य शिक्षा ग्रहण करना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए आवश्यक है प्रोफेशनल कोर्स की। भविष्य में प्रोफेशनल्स की कमी की आशंका को देखकर ही सरकार ने शिक्षित युवाओं को कुशल पेशेवर बनाने का निर्णय लिया है जिसके तहत स्किल डेवलपमेंट सेंटर खोले जाएंगे।
असमंजस का शिकार
लंबे समय से स्कूल के अहाते से बाहर निकलकर छात्र कॉलेज-विश्वविद्यालय जैसे बृहद संसार में प्रवेश करते हैं। बारहवीं के बाद ऐसे चौराहे पर खड़े होते हैं, जहां से एक खास रास्ते का चुनाव करना होता है। ऐसा रास्ता चुनना होता है जो उनकी मनपसंद कॅरियर के मुकाम तक पहुंचाता है। पहले की अपेक्षा अब विकल्पों की कमी नहीं है। अधिाक विकल्प होने की वजह से विद्यार्थी में असमंजस की भी स्थिति भी उतनी होती है। इसी समय विद्यार्थी को तय करना होता है- प्रोफेशनल कोर्स या फिर सामान्य कोर्स।
कमी नहीं विकल्प की
वर्तमान में परंपरागत विषयों के साथ-साथ सैकड़ों नये विकल्प सामने उपलब्धा हैं। इन विकल्पों में से कई ऐसे विकल्प हैं जो विगत कुछ वर्षों में अपनी उपस्थिति बहुत ही प्रभावशाली ढंग से दर्ज किया है। आइए, ऐसे ही क्षेत्रों के बारे में जानते हैं:
एनीमेशन: विगत वर्ष हनुमान और रोडसाइड रोमियो जैसे एनीमेशन फिल्मों के साथ भारतीय कंपनियां और स्टूडियो इस ओर कदम बढ़ाया है। भारत में कम कीमत पर फिल्म तैयार हो जाने के कारण भी कई विदेशी प्रोडक्शन कंपनियां यहां फिल्म बनाने के लिए समझौता किया है। इसी कड़ी में यशराज फिल्म्स ने वाल्ट डिजनी के साथ समझौता किया है। फिक्की की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2007 में यह उद्योग लगभग 0.31 बिलियन डॉलर का था जो वर्ष 2012 तक 24 प्रतिशत की वृध्दि दर्ज कर 0.94 बिलियन डॉलर का हो जायेगा।
मीडिया-एंटरटेनमेंट: मंदी के कारण मीडिया एवं एंटरटेनमेंट उद्योग पर असर पड़ा, लेकिन छात्रों का इस क्षेत्र कोर्स के प्रति रूझान कम नहीं हुआ है। फिक्की के एक रिपोर्ट के अनुसार यह उद्योग वर्ष 2011 तक एक लाख करोड़ रुपये तक का हो जायेगा। इस क्षेत्र में फिल्म प्रोडक्शन से लेकर टीवी चैनलों में काफी अवसर उपलब्ध हैं।
टेलीकॉम: सरकार कई नयी टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस प्रदान कर रही है और भारत में एक नयी पीढ़ी (थ्री जी) की मोबाइल सेवा लांच किया गया है। इसके साथ ही इस क्षेत्र में नये तकनीक का विस्तार होगा जिसके लिए लगभग डेढ़ लाख प्रोफेशनल्स की जरूरत होगी। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2010 तक भारत में 500 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता हो जायेंगे। इस क्षेत्र में टेलीकॉम सॉफ्टवेयर इंजीनियर, टेलीकॉम सिस्टम सॉल्यूशन इंजीनियर, कस्टमर सर्विस एक्जीक्यूटिव और टावर कनेक्शन जैसे में बेहतर संभावनाएं हैं।
लॉ: विगत कुछ वर्षों से परंपरागत कॅरियर के अलावा इस क्षेत्र में एक नया कॅरियर उभर कर सामने आया है लॉ प्रोसेसिंग आउटसोर्सिंग (एलपीओ)। एलपीओ काफी तेजी से विकास कर रहा है। नैस्कॉम मार्केट इंटेलिजेंस रिपोर्ट के अनुसार भारत में एलपीओ कारोबार 2010 तक छह अरब डॉलर को पार कर जायेगा। इसके अलावा बहुराष्ट्रीय कंपनियों में लीगल एडवाइजर और कंसल्टेंट जैसे पद के लिए काफी डिमांड बढ़ा है।
बीमा: बीमा क्षेत्र हमेशा से ही आसानी से उपलब्धा हो जाने वाला कॅरियर रहा है। इस क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिये जाने के बाद इसमें काफी रोजगार सृजन हुए। इतने के बावजूद भारत की लगभग मात्र 22 प्रतिशत लोग ही बीमा करवा पाये हैं, जबकि अमेरिका और यूरोपीय देशों में लगभग शत-प्रतिशत लोग अपना बीमा करवाए होते हैं। देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने निजी कंपनियों से मिल रही चुनौतियों का सामना करने के लिए वर्ष 2011 तक 11 लाख एजेंट भर्ती करने की योजना है। इसके अलावा रिलायंस लाइफ 90 हजार, मेटलाइफ इंडिया 32 हजार और टाटा एआईजी लगभग 27 हजार लोगों को भर्ती करने की योजना है।
बैंकिंग: वैश्विक मंदी के बावजूद भी भारतीय बैंक इन दिनों काफी विकास कर रहा है। साथ ही अपने विस्तार के लिए नयी भर्तियां भी कर रहे हैं। हाल ही में देश की सबसे बड़ी बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने 25 हजार लोगों को भर्ती करने की घोषणा की है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अमूमन हर हफ्ते नये भर्ती की घोषणा होती रहती हैं। निजी क्षेत्र के भी कई बैंकों में नयी भर्तियां हो रहे हैं। आने वाले दो वर्षों में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी बैंक आईसीआईसीआई बैंक एक लाख लोगों को रोजगार प्रदान करेगी।
मैनेजमेंट: मंदी के बावजूद कैंपस प्लेसमेंट कम नहीं हुआ है। मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए छात्रों का रूझान भी कम नहीं हुआ है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कैट परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों में निरंतर बढ़ोतरी हुई है। बी-स्कूलों में दाखिला के लिए देश में कई एंट्रेंस टेस्ट आयोजित किये जाते हैं। इनमें से किसी परीक्षा में शामिल होकर बेहतर अंक प्रतिशत के साथ पसंदीदा बी-स्कूल में दाखिला लिया जा सकता है।
हेल्थ सेक्टर: प्राइसवाटरहाउसकुपर्स के अनुसार, हेल्थ सेक्टर 2012 तक 40 बिलियन डॉलर का हो जायेगा। इस क्षेत्र में आगामी कुछ वर्षों में लगभग 60 अरब डॉलर निवेश की संभावना है। जापान की कंपनी दाइची सैंक्यो ने भारत की सबसे बड़ी फार्मा कंपनी रैनबैक्सी का अधिाग्रहण किया है। इसके अलावा कई विदेशी कंपनियां अपनी इकाई भारत में खोल रहा है। साथ ही भारत में मैनपावर की कम कीमत होने की वजह से अपने शोधा कार्य भी भारत में करवा रहे हैं। इसके लिए काफी प्रोफेशनल्स की मांग होगी।
टूरिज्म: नवंबर माह में मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद भारत में विदेशी सैलानियों के आने में कमी दर्ज की गयी थी लेकिन विगत कुछ माह में सुधारे हालात के बाद सैलानियों के आने की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म के मुताबिक भारत ने वर्ष 2008 में टूरिज्म से लगभग 100 बिलियन डॉलर की कमाई अर्जित की है जो वर्ष 2018 तक 9.4 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़कर 275.5 बिलियन डॉलर का हो जायेगा। हाल के वर्षों में भारत ने मेडिकल टूरिज्म से भी काफी घन किया है।

क्या करें, क्या न करें

कोर्स चुनने से पहले अपनी रुचि, क्षमता व कॅरियर विकल्प पर विचार अवश्य करें।
दूसरों की देखा-देखी में कोर्स का चयन न करें। पारंपरिक कोर्स के बजाय नये विकल्पों पर भी विचार करें।
अनिर्णय की स्थिति में काउंसलर की सलाह लें।
लक्ष्यहीन या दिशाहीन पढ़ाई न करें।
जिस संस्थान से कोर्स करना चाहते हैं, उसकी मान्यता के बारे में पता जरूर कर लें।
कोर्स चुनते समय कॅरियर से संबंधिात विकल्प संभावनाओं का भी धयान रखना चाहिए।