Saturday, February 23, 2008
भूख
पंकज रामेन्दू मानव
जब घुटने से सिकुड़ा पेट दबाया जाता है
जब मुंह खोल कर हवा को खाया जाता है
जब रातें, रात भर करवट लेती है
जब सुबह देर से होती है
जब चांद में रोटी दिखती है
तब दिल में यह आवाज़ उठती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
जब गिद्ध मरने की राहें तकता है
जब कचरे में भी कुछ स्वादिष्ट दिखता है
जब कलम चलाने वाला बार-बार दाल-चावल लिखता है
जब एक वक्त की खातिर जिगर का टुकड़ा बिकता है
जब रातें सूरज पर भारी होती हैं
तब दिल से एक आवाज़ होती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
जब हांडी में चम्मच घुमाने का कौशल दिखलाया जाता है
जब चूल्हे की आंच से बच्चों का दिल बहलाया जाता है
जब मां बच्चों की कहानी सुना, फुसलाती है
जब सेहत की बातें बता ज़्यादा पानी पिलवाती है
जब रोटी की बातें ही आनंदित कर जाती हैं
तब दिल से एक हूक उठती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
जब पेट का आकार बड़ा सा लगता है
जब इंसान भगवान पर दोष मढ़ता है
जब भरी हुई थाली महबूबा लगती है
जब महबूबा सुंदर कम स्वादिष्ट ज़्यादा दिखती है
तब दिल से एक हूक उठती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
जब एक टुकड़ा ज़िंदगी पर भारी लगता है
जब तिल तिल कर जीना लाचारी लगता है
जब बातें रास नहीं आती
जब हंसना फनकारी लगता है
जब एक निवाले पर लड़ती भौंक सुनाई देती है
तब दिल से एक हूक उठती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
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4 comments:
kahne ko to BHUKH par aapne bahut kuch likh diya.
par samasaya ka hal abhi tak na diya.
de dete kuch hal agar to hum kuch kar pate.
kude me khana dhundte hath bhi kuch kar Jate.
wese ye prayas bura nahi hai.
par likhne se pet kisi ka bharta nahi hai.
LEKIN HUM LEKHAKO KO KON SAMJAYE.
shayad hamara likha dekh kar hi samaj badal jaye.
BABITA ASTHANA
Bhut accha likha h bhukh pr
Bahut khub
Bahut khub
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