जैसे जैसे चुनाव निकट आता है सबसे पहले विवेक मर जाता है। यह बात दिल्ली की राज्य सरकार या केंद्र सरकार दोनों पर बड़ा सटीक बैठता है। दिल्ली की इसलिए बोलना पड़ रहा है क्योंकि एक तो दिल्ली की है ही और जो दूसरी है जिसे आप केंद्रीय सरकार कहते हैं वो दिल्ली के अळावा कहीं की सोचती नहीं है। खैर विषय यह नहीं है हम विषय से ना भटकते हुए सीधे विषय पर आते हैं। १६ अप्रैल को हिंदुस्तान के पेज नं. १३ पर एक विज्ञापन छपा,(हिंदुस्तान का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मैंने इसमें देखा था, आपने हो सकता है किसी और अखबार में देखा हो) विज्ञापन का विषय है भूख मुक्त दिल्ली-एक सार्थक कदम। आप की रसोई नाम के इस कार्यक्रम में लोगों को मुफ्त खाना खिलाया जाएगा, इस महान काम में जनहित कार्य क्यों नहीं कह रहा हूं इसका आगे विवरण दूंगा, अभी से अलबलाइए मत। इस महान काम में दिल्ली सरकार का सहयोग दे रहे हैं स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर।
भारत को भिखारियों का देश कहा जाता है ऐसा कुछ लोग कहते हैं औऱ यह कुछ लोग विदेशी ज्यादा होते हैं यह ऐसा क्यों कहते हैं क्योंकि यह ऐसा कह सकते हैं औऱ चूंकि यह लगातार ऐसा कह रहे हैं तो हमने मान भी लिया है अब जब हमने मान लिया है तो इस बात को साबित भी करना होगा तो हम लगातार लोगों को फोकट में खाना देंगे औऱ अलालों की संख्या में तेज़ी के साथ इज़ाफा होगा। औऱ हम झूठे नहीं कहलाएंगे वैसे भी आजकल स्लम टूरिज्म की काफी मांग है तो इसमें भिखारी टूरिज़्म भी बढ़ जाएगाा औऱ सरकार को टूरिज़्म से फायदा मिल जाएगा औऱ जो बाकी सहयोगी बचे हैं उन्हे मुफ्त का प्रचार मिल रहा है।
भारत को संतो का देश भी कहा जाता है जो संत होते हैं वो कोई काम-वाम नहीं करते वो सिर्फ बातें करते हैं, उन्हें मोह-माया भौतिकता से कोई नाता नहीं होता है, वो जेब में पैसा लेकर नहीं घूमते, अब जब जेब में पैसा लेकर नहीं घूमते तो भरण-पोषण कैसे करेंगे, और जेब में पैसा आएगा कैसे जब कुछ काम नहीं करेंगे औऱ काम क्यों करे जबकि यह कहा गया है कि संत सिर्फ ईश्वर के आदेश पर चलते हैं। जब ईश्वर की मर्जी के बगैर कुछ चलता नहीं, उसकी मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता, वो ही चोर से कहता है चोरी कर वो ही पहरेदार से कहता है जागता रह, जब सब कुछ उसी को करना है तो फिर हम क्यों कुछ करें, हम निठल्ले रहेंगे। ये निठल्ले होने का आदेश हमें ईश्वर से मिला है तो दिल्ली सरकार की क्या मजाल की वो इस आदेश का पालन ना करे, फिर अक्षरधाम भी तो ईश्वर का ही धाम है तो वो तो इस आदेश का पालन करने के लिए करबद्ध है, तो कुल मिलाकर ये देश संतों का हे, संत फकीर होते हैं, फकीर कुछ काम नहीं करते, बगैर काम किये पैसा नहीं मिलता, बगैर पैसे के पेट नहीं पलता, बगैर पेट पले इंसान ज़िंदा नहीं रहता, तो भारत की पंरपरा को आगे बढ़ाते हुए हमें निठल्लावाद, कामचोरीवाद और फोकटवाद को एकसाथ बढ़ावा देते हुए लोगों को मुफ्त में भोजन कराना है और अपनी परपंरा को आगे बढ़ाना है। भारत माता की जय।
माफ कीजिएगा जज्बात में आकर एक तकनीकी पक्ष रखना भूल गया। भूख मुक्त दिल्ली नामक इस विज्ञापन का एक तकनीकी पक्ष भी है जिसकी रखे बगैर बात अधूरी सी रह जाएगी। इस फोटू को गौर से देखिए, इस तस्वीर से आप को इसे छापने वाले, इसके लिए दान लेने वाले औऱ मुख्यमंत्री जी की भागीदारी प्रदर्शित करने वाले, कुल मिलाकर इस पूरी योजना में संपूर्ण रूप से सम्मिलित लोगों की भूख का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस तस्वीर में जो लोग बैठ कर खाना खा रहे हैं उनमें से किसी को भी देख कर यह नहीं लगता की वो काम करके पेट नहीं भर सकता, इससे भी आगे बढ़कर एक बात औऱ है जो लोग खाना खा रहे हैं उनमें से पहले वाले की थाली ही खाली और चमचमाती सी रखी है। यानि हम सिर्फ बातें परोसेंगे। खा सको तो खालो।
किसी का पेट भरना बुरी बात नहीं है, बुरी बात है समस्याओं का ढांकना, केंद्र सरकार किसानों की समस्याओं को सुलझाएगी नहीं उन्हे ६० अरब रू का दान देकर उन्हे कामचोर बनाएगी। किसान मरते रहे तो मरे हमें क्या हमने तो अरबों रु का कफन का इंतज़ाम कर दिया है। लोग बेरोज़गार है तो सत्ता उन्हे काम नहीं दिलवाएगी, वो उन्हे फोकट में खाना खिलाएगी। जब रोटी जितनी भारी चीज़ उठाने मात्र से ही पेट भर रहा है तो मेहनत का सब्बल-फावड़ा उठाने की क्या ज़रूरत।
हे सत्ता तुम धन्य हो. तुम्हे नमन हो।
पंकज रामेन्दू
1 comment:
very nice story!!!!!
Ankush
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