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Wednesday, April 28, 2010

एक सवाल

पंकज रामेन्दू

एक सवाल हर बार सोचता हूं कि जिंदगी जब एक रूपया हो जायेगी,तो बारह आने खर्च कर डालूंगा औऱ चाराने बचा लूंगा, कभी ज़रूरत पड़े,तो इन चारानों से बारानों का मज़ा ले सकूं,लेकिन जब भी वक्त की मुट्ठी खुलती है तो हथेली पर चाराने ही नज़र आते हैं पूरी जिंदगी चाराने को बाराने बनाने में होम हो जाती है, कई बार लगता है कि जब ये रुपया हो जायेगी तो क्या जिंदगी, जिंदगी रह जाएगी ?

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