Pages

Friday, March 7, 2008

हे नारी !




प्रेम हो तुम, स्नेह हो
वात्सल्य हो, दुलार हो
मीठी सी झिड़की हो, प्यार हो,
भावनाओं में लिपटी फटकार हो
हे नारी ! तुम अपरंपार हो ।

प्रसव वेदना सहती ममता हो
विरह वेदना सहती ब्याहता हो,
सरस्वती, लक्ष्मी भी तुम हो
तुम ही काली का अवतार हो,
हे नारी ! तुम अपरंपार हो ।

कैकयी हो, कौशल्या हो,
मंथरा भी तुम, तुम ही अहिल्या हो.
वृक्षों से लिपटी बेल हो,
कहीं सख़्त, सघन देवदार हो
हे नारी ! तुम अपरंपार हो ।

सति तुम ही, सावित्री तुम हो
जीवन लिखने वाली कवियत्री हो,
दोहा, छंद , अलंकार तुम ही
तुम ही मंगल सुविचार हो
हे नारी ! तुम अपरंपार हो ।

नदी हो तुम कलकल बहती,
धरती हो तुम हरियाली देती,
जल भी तुम हो, हल भी तुम हो,
तुम जीवन का आधार हो
हे नारी ! तुम अपरंपार हो ।

जीवन का पर्याय हो तुम
आंगन, कुटी, छबाय हो तुम
यत्र तुम ही, तत्र तुम ही,
तुम ही सर्वत्र हो
ईश्वर की पवित्र पुकार हो
हे नारी ! तुम अपरंपार हो ।

गेंहू तुम हो, धानी तुम ही
तुम मीठा सा पानी हो,
जब भी सुनते अच्छी लगती
ऐसी एक कहानी हो,
कविता में शब्दों सी गिरती
एक अविरल धार हो
हे नारी ! तुम अपरंपार हो ।

जन्म दिया तुम ही ने सबको
तुम ही ने तो पाला है
पहला सबक लेते हैं जिससे
वो तेरी ही पाठशाला है
एक पंक्ति में,
तुम जीवन का आधार हो
हे नारी ! तुम अपरंपार हो ।

पंकज रामेन्दू मानव

2 comments:

Udan Tashtari said...

पंकज जी की रचना अच्छी लगी...

Babita Asthana said...

pankaj ji aapne nari ke bare mai bahut khoob likha hai par aapne yah kewal antarrastriya mahila divas ke uplaksha me hi kiyo likha kiya nari vedna pahle man me nahi thi.

"wese to nari aprampar hai
nari jeevan ka adhar hai
nari karuna,daya,kshama hai
nari sabse mahan hai
lekin phir bhi khoj rahi
nari apna hi samaman hai
apna hi adhikar hai,
apna hi sansar hai.
lekin mahila divas manane
sara jag tiyar hai.
kiyonki yah batana zaroori bhi hai ki nari mahan hai.
BABITA ASTHANA