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Wednesday, March 19, 2008

होली

जिस दिन जिसकी लालसा ने
मनवांछित तृप्ति पा ली
वह दिन उसके लिए
बस समझो हो गया होली .

भूख से भैराते भिखमंगे ने
जिस दिन भरपेट रोटी खा ली
वह दिन उसके लिए
बस समझो हो गया होली .

विरह वेदना से व्याकुल विरही ने
जिस दिन प्रिय की झलक पा ली
वह दिन उसके लिए
बस समझो हो गया होली .

वर्षों से कलम घिसते कवि ने
जिस दिन संपादक की कृपा हथिया ली
वह दिन उसके लिए
बस समझो हो गया होली

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

विकास जी, बिल्कुल सही बात लिखी है। अच्छी कविता है।