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Sunday, March 23, 2008

सबसे खर्चीले पीएम थे नेहरू


क्या देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू दुनिया के सबसे अधिक खर्चीले प्रधानमंत्री थे।

इस सवाल पर पचास के दशक में देश में करीब पांच साल तक संसद, मीडिया और सार्वजनिक जीवन में यह बहस चली थी। पंडित नेहरू के सबसे खर्चीले प्रधानमंत्री होने का आरोप प्रख्यात समाजवादी चिंतक डा. राम मनोहर लोहिया ने लगाया था। उनका कहना था कि नेहरू ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति से भी ज्यादा खर्चीले हैं।

डा. लोहिया ने सरकारी आंकड़ों से यह सिद्ध किया था कि पंडित नेहरू पर प्रतिदिन 25 हजार रुपये खर्च होते हैं और वह दुनिया के सबसे अधिक खर्चीले प्रधानमंत्री हैं। इतना खर्च तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मैकमिलन और अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी पर भी नहीं होता। लोहिया ने इस पूरी बहस पर प्रतिदिन पच्चीस हजार रुपये नामक एक पुस्तक भी लिखी थी जो तब बिहार के दरभंगा से कौटिल्य प्रकाशन से हुई थी।

डा. लोहिया की 98वीं जयंती के मौके पर अनामिका प्रकाशन द्वारा नौ खंडों में प्रकाशित लोहिया रचनावली में यह अनुपलब्ध पुस्तक दोबारा प्रकाशित हुई थी। रचनावली का संपादन प्रख्यात समाजवादी पत्रकार, लेखक एवं विचारक मस्तराम कपूर ने किया है। 82 वर्षीय कपूर ने यूनीवार्ता को बताया कि लोहिया के निधन के 40 वर्ष बाद बड़ी मुश्किल से लोहिया की रचनाएं एकत्र हो पाई हैं, क्योंकि उनकी बहुत-सी सामग्री अनुपलब्ध है ओर लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं है। पंडित नेहरू को सबसे अधिक खर्चीला प्रधानमंत्री बताने वाली पुस्तक प्रतिदिन पच्चीस हजार रुपये के बारे में भी आज कइयों को जानकारी नहीं है। यह बहस तब संसद में भी चली थी और किशन पटनायक जैसे समाजवादी नेता का पंडित नेहरू से इस बारे में लंबा पत्राचार भी हुआ था।

डा. लोहिया का कहना था कि उन्होंने पंडित नेहरू के सरकारी खर्च की बात व्यक्तिगत द्वेष के कारण नहीं कहीं थी। उन्होंने बजट के आंकड़ों को पेश कर अपने आरोप की पुष्टि की थी। पंडित नेहरू इससे तिलमिला गए थे, उन्होंने बार-बार इस आरोप का खंडन किया और अंत में किशन पटनायक से इस संबंध में पत्राचार ही बंद कर दिया।

रचनावली के अनुसार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पर 500 रुपये प्रतिदिन और अमेरिका के राष्ट्रपति पर करीब पांच हजार रुपये प्रतिदिन खर्च होते थे। किशन पटनायक ने डा. लोहिया के इस आरोप की जांच कराने की भी संसद में मांग की थी, लेकिन सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया था।

डा. कपूर का कहना है कि अब तो सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों पर अनाप-शनाप सरकारी खर्च हो रहे हैं पर यह अब संसद में बहस का विषय नहीं है। डा. लोहिया सार्वजनिक जीवन में सादगी और नैतिकता के पक्षधर थे। जब वह सांसद बने तो उनके पास मात्र दो जोड़ी कपड़े थे।

डा. लोहिया पहले नेहरू से प्रभावित थे, पर धीरे-धीरे उनकी नीतियों से उनका मोहभंग हो गया और वे नेहरू के कटु आलोचक होते चले गए। वह हर तरह के अन्याय, दमन, गुलामी, शोषण और असमानता के विरोधी थे। वह समतामूलक समाज का सपना देखते थे। इसके लिए उन्होंने काफी संघर्ष भी किया। अभी सात आठ खंडों में उनकी और सामग्री आएगी। इस रचनावली से भविष्य में डा. लोहिया का समग्र मूल्यांकन हो सकेगा। दो साल बाद जब उनकी जन्मशती पड़ेगी तो नई पीढ़ी नए सिरे से लोहिया को जानेगी और उनकी समग्र रचनाओं के आधार पर इतिहास में उनको सही जगह मिलेगी।
(साभार याहू)

4 comments:

अनुनाद सिंह said...

कितने आश्चर्य का विषय है की इतनी मह्त्वपूर्ण बात आज तक अधिकतर लोगों को पता नहीं है। किसी ने इसे प्रकाशित किया, बहुत अच्छी बात है।

ghughutibasuti said...

यह बात पता नहीं थी । जानकारी देने के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती

संजय बेंगाणी said...

यह बात पता नहीं थी.

Anonymous said...

नई जानकारी के लिए धन्यवाद