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Friday, February 15, 2008

छुट्टे सांड और भांड



पंकज रामेन्दु
राजधानी दिल्ली हो या बिहार का छपरा, एक प्राणी है जो सर्वव्याप्त है। मस्तमौला यह प्राणी सड़क से लेकर संसद तक हर जगह उनमुक्त होकर विचरण करता है। किसी माइके लाल में इत्ती हिम्मत भी नही है कि इसको उठाने की कोशिश कर सके। अभी कल ही की बात है, सड़क पे ये लंबा जाम लगा हुआ था, हमारी बदकिस्मती ऐसे मौके पर इतनी कामयाब रहती है कि उसने हमें पीछे रख छोड़ा था, तो साहब नज़र तो कुछ आ नही रहा था, थोड़ा सा आगे वालों से जानकारी जुटाई तो मालूम चला कि एक सांड महोदय हैं उन्हें रोड इतनी पसंद आ गई है कि वो उस पर आराम करना चाह रहे थे। और यह कंबख्त गाड़ी वाले पीं पीं करके उनके आराम में खलल डाल रहे है, बस इस बात पर सांड साहब को गुस्सा आ गया और लोकतांत्रिक शरीर में तानाशाही आत्मा ने प्रवेश कर डाला।
अब साहब बर्दाश्त की भी एक हद होती है, एक तो कोई किसी से कुछ कह नहीं रहा है अपना आराम कर रहा है, औऱ यह गाड़ीवाले हैं कि लगे हैं उंगली करने में। भैया पूरे 3 घंटे में सांड साहब माने।
साहब यह सांड वो प्राणी है जो पहले आराम से बदमाशी किया करता था, कभी कभार इसका उपयोग चुनावी के दौरान किया जाता था, फिर इसको लगा कि भैया यह कोन बड़ी चीज़ है राजनीति तो ससुरी सांडगिरी का ही काम है तो ये भी कूद पड़े मैदान में, और लो जीत भी गये, गाय जनता ने सोचा कि वैसे ही कौन से भले हो रहे हैं कम से कम ये अपनी तरह जमीन से जुड़कर बदमाशी तो किया करता है। अब साहब यह सांड भाई छुट्टे होकर राजनीति के गलियारों में घूमते हैं।
सांड की सांडाई बताने में एक प्राणी का ज़िक्र करना तो भूल ही गया, तो ऐसा है कि भारत देश में सांड जितना खुला है उतना ही हक एक औऱ प्राणी को मिला है, यह है भांड। भांड एक ऐसा प्राणी है, जो राजे महाराजे के ज़माने से अपने कर्तव्य को निभाता आ रहा है, सत्ता की ताल में ताल ठोंकता भांड हमेशा खुश रहने वाला प्राणी है, चाहे गाली पड़े या ताली मिले। भांड का काम हंसते-हंसते सब ज़ब्त कर जाना है। यह जीने का एक ही सिद्धांत मानता है जहां बम वहां हम। यह सत्ता के सांडों को ज्ञान भी देता है औऱ चाशनी सी बातों में घुली हुई सानी देकर खुद को भी पोसता रहता है। भांड ने ही जामवंत के माफिक सांड को उसकी शक्ति का एहसास दिलाया है।
आज के ज़माने में भैया ये ही है जो जमे हुए हैं औऱ लगातार सफलता को चूम रहे हैं। कई बार मुझे लगता है कि सांड बनने की औकात मेरी है नहीं, भांड बनने के तरीके मुझे मालूम नहीं है, यही कारण हैं कि मैं आज तक ऐवेंइ पड़ा हुआ हूं। भैया सांडगिरी हो या भांडगिरी सब टैलेंट की बात है, हर किसी के बस का रोग नहीं है।
क्या कर सकते हैं, ईश्वर कला से हर किसी को थोड़े ना नवाज़ता है. तो भैया हमारे पास तो अफसोस करने के अलावा कोई चारा नहीं है। अगर आप में यह टैलेंट है तो देर मत कीजिए, अपनी इस कला को निखारिये देखिए फिर क्या कमाल होता है।

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