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Friday, February 29, 2008

टी.वी. पर ट्राई मारने का है एक बार।



संजीव चौधरी

सात-आठ साल उम्र के दो बच्चे । एक के गले में लटका हुआ छोटा-सा पुराना
हारमोनियम और दूसरे के हाथ में एक डफ़ली । महानगर नयी दिल्ली का व्यस्ततम
इलाका कनॉट प्लेस इन दोनों बच्चों के कमाने-खाने की जगह। फुटपाथ और खुले
आसमान के अलावा जमा पूंजी के नाम पर और तीसरा उनके पास कुछ भी नहीं। उलझे
बाल, बुझे चेहरे और अलमस्त आंखों में सुलगते हुए सवाल महानगर की इलीट
सोसायटी से अनजान नहीं है । समाज में हाशिये पर रुके ये बच्चे इतने नादान
भी नहीं हैं कि हवा का रुख भी न भांप सके । माहौल और मौका देखकर कभी माता
की भेंट गाते हैं तो कभी दुत्कार मिलने पर सिर खुजाने के अलावा और दूसरा
चारा नहीं रहता । कभी हल्की सी रोमांटिक आवारगी में 'ये इश्क हाय' गाते
हैं कभी 'सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा' । जनपथ बाज़ार पर पटरी
के किनारे चिंहुकते इन दोनों बच्चों से मुखातिब हुआ -

क्या नाम है?
असली नाम तो कुछ और है लेकिन मुझे रितिक कहते हैं और मेरे इस दोस्त को
अभिषेक । आपको क्या काम है हमसे, गाना सुनोगे?

नहीं, कहां रहते हो?
यूं तो हम पहाड़गंज के हैं । यहां और कई ऐसे बच्चे हैं, जो जमनापार,
पहाड़ी धीरज और कुचापातीराम से आते हैं। अपुन कनॉट प्लेस में रहते हैं,
अपुन का दिल यहीं लगता है।

मां-बाप क्या करते हैं?
नहीं मालूम।

मां-बाप का क्या नाम है?
होगा कुछ, वो भी नहीं मालूम।

सिंगर कैसे बने?
पैसा कमाने के लिए। अभी इधर दिल्ली में हैं। टी.वी. पर ट्राई मारने का
है एक बार। बाम्बे जाने का मूड है।

मां की याद नहैं आती?
नहीं।एक बाई है बाई। वे जी.बी. रोड एरिया है न, वहीं है। उसी को मां बोलते हैं।

गाकर कितना कमा लेते हो?
कुछ पक्का नहीं। इधर धंधा बहुत डल है। बीस-तीस की पॉकेट हो जाती है।

कभी स्कूल गये हो?
क्यों जाएं स्कूल, वहां कोई पैसे मिलते हैं।

कहां-कहां गाते हो?
कभी सफेद बस में, कभी लाल बस में, कभी नीली बस में। कई बार रेल में भी
गाते हैं। शाम को इधर जनपथ पर गाते हैं। इधर का छोकरी बहुत अच्छा है।
छोकरा लोग पैसा नहीं देता। कुछ और पूछना है आपको? कौन हैं आप?

सबसे ज्यादा गाना कौन सा गाना गाते हो?
बस दीवानगी है, ओम शान्ति ओम।

3 comments:

Babita Asthana said...

Sanjeev sir aap un bekar k bhikhmange bachachon se kiyo mukhatib hue agar interview hi lena tha to kisi mahan,saphal or dolatmand ka hi lete to kam se kam kuch log pad to lete or agar aap unki jagha deepika padukone ya sharukh,aish k bare me likhte to log khana peena chhod kar padte.phir kiyo likha un bekar k bachacho k bare me unki akeli zindagi k bare mai.aaj kal to logo ke pass akhabar ki head line tak padne ka time nahi hai tab sadak chhap bachachon k bare me kon padega or agar galati se pad bhi liya to kiya kar lega na jane kitne aise bachache hai jo is taraha hi apna pet bharte hai isi tarha se gana ga ga kar logo ko pareshan karte hai or jab log zada hi pareshan ho jate hai to 1 rupiya de kar unka muh band kar dete hai.ab aap hi bataen kiyo kar rahe hai aap unke liye apna waqut zaya.

Sanjeev Vedwan said...

बबीता आप की बात के पीछे छिपे पत्रकारिता के कटाक्ष को मैं समझ सकता हूं.. लेकिन यह तो दर्द को समझने और महसूस करने वाली बात है.. कोई अगर ऐश. दीपिका के बारे में बात करता है तो मुझे उससे कोई आपत्ति नहीं है.. ना ही मैं इन बातों से गुरेज़ करता हूं.. लेकिन यह कह देना की कोई पढ़ नही रहा है यह तो ग़लता होगा.. आपने पढ़ा कि नहीं.. और देखिए पहल के लिए ज़रूरी पहला क़दम होता है.. वो उठाने का जज़्बा अगर है तो बाकि सारी बाते हो जाती है.. आप इस लेख के मरुस्थल पर पहली बूंद बन कर गिरी हैं... और जब पहली बूंद गिर गयी है.. तो बारिश भी हो जायेगी..
वैसे भी कहा गया है.. कुछ ना कुछ तो हल निकलेगा.. आज नहीं तो कल निकलेगा.. जो ना हारा इस जीवन से उसका जीवन चल निकलेगा...

Babita Asthana said...

Sanjeev Sir ji aapne bahut khub likha lekin 1 sawal ab bhi zahan mai hai? ki........
bholi si muskan liye un dekha bachpan,
sadkon par haste gate un dekha bachpan,
umameedon ki dor sajaye dekha bachpan,
logo se dhutkare jate dekha bachpan,
kabhi akho me ansu laye dekha bachpan,
LEKI KIYA HASTA JAYEGA YE BACHPAN,
JEEWAN ME AAGE BAD PAYEGA YE BACHPAN,
KHAWO KO PURA HOTE DEKHEGA YE BACHPAN,
YA YUN HI KHO KAR RAH JAYEGA YE BACHPAN.
BABITA ASTHANA