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Monday, February 25, 2008

जय जवान, जय किसान


जय जवान, जय किसान, यह नारा भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लाल बहादूर शास्त्री ने दिया था, यह बात हम सब को मालूम है, इस नारे से प्रभावित होकर उपकार फिल्म का निर्माण हूआ यह भी हम लोग जानते हैं। उपकार फिल्म का गाना मेरे देश की धऱती सोना उगले-उगले हीरे मोती, हम सभी ने सुना है (वैसे भी हर स्वतंत्रता दिवस पर यह गीत कही ना कहीं सुनाई दे ही जाता है।)। मेरे ख्याल से मेरी इस बात से किसी को गुरेज नहीं होगा।
भूतपूर्व प्रधानमंत्री के नारे दिए जाने औऱ फिल्म निर्माण से अब तक काफी समय गुजर गया, देश ने काफी तरक्की भी कर ली, हर जगह मॉल भी खड़े हो गए, औऱ तो औऱ सेज़ की सेज बनाकर सरकार ने गहरी निंद्रा भी तान ली। इस पूरे बदलावीकरण में कुछ चीजें है जो हमारी परंपराओं के समान अडिग रही, औऱ ना पहले बदली औऱ नही अब बदली, हां बदतर ज़रूर होती गई। किसान आज भी मुंशी प्रेमचंद की पूस की रात का किरदार है जो अपने कुत्ते झबरा को छाती से चिपटाकर हाड़ तोड़ती सर्दी में गर्माहट लेता है, यह किसान कभी जवान नहीं हो पाया क्योंकि वक्त से पहले झुकती कमर ने इसे बचपन से सीधे बूढ़ापे ला पटका, हर जगह पराजय स्वीकारता किसान कभी जय किसान नहीं बन पाया।
कभी प्रकृति की मार सहता, कभी सूखा कभी बाढ़ सहता यह किसान इन त्रासदियों से उभर नहीं पाता है कि कोई नई मुसीबत उसके सामने दम साधे खड़ी रहती है।



सेज़ की सेज पर नंदीग्राम में कई लाशे सोई पड़ी है, तो विदर्भ में अपने पेट को घुटने से चिपकाकर अपनी भूख को मारता किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है। यहां प्रधानमंत्री भी आते है, औऱ मुख्यमंत्री भी दौरा करते हैं लेकिन इनके वादों की आभासीय मिठाई मुंह मीठा नहीं कड़वा कर जाती है। किसान इन मु्द्दो को सहन करने के बाद फिर उठने का प्रयास करने लगा तो हमारे देश के कर्णधारों को यह भी नागवार गुजरा औऱ वो गेंहू के मूल्य निर्धारण का निर्णय लेकर फिर किसान की कमर तोड़ने पर आमादा हो गए।
जिस देश का स्थान कृषि में सर्वोच्च रहा करता था, आज उस भारत में कृषि सरककर तीसरे स्थान पर आ गई है। बढ़ते शहरीकरण औऱ खेती में लगातार होते घाटे को देखते हुए किसान का मन भी अब खेती की ओऱ से खट्टा होने लगा है औऱ वो शहरों की तरफ आकर्षित हो रहा है, जो न सिर्फ उसके लिए बल्कि देश के लिए भी एक चिंतन का विषय है। आज का किसान अपनी दो बीघा ज़मीन को वापस पाने के लिए शहरों में संघर्ष करने नहीं पहुंच रहा है बल्कि उसका उचटा मन उसे यह करने पर मजबूर कर रह है। हमारे देश की शासन व्यवस्था जिसने कभी ज़मींदारी प्रथा औऱ सूदखोरी जैसी व्यवस्थाओं पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाए थे, आज मदर इंडिया के सुख्खी लाला की तरह हर किसान का दो तिहाई अनाज छीन रही है औऱ बिरजू बना किसान आज भी सुख्खी लाला के बही को दुनिया की सबसे कठिन पढ़ाई समझे बैठा हुआ, एक बेबस की तरह उसे समझने का प्रयास कर रहा है।

1 comment:

alisha said...

a vry nice n realistic esay which tells us abt the past and preasent of the hardworking farmers..